बंगबंधु के हत्यारे माजिद को बांग्लादेश की अदालत ने फांसी के तखते पर चढ़ाया
हत्यारे ने फांसी पर चढ़ने से पहले कुबूला, 25 वर्ष तक छुपा रहा कोलकाता में
NRC की जरूरत ऐसे ही अपराधियों को देश से बाहर भगाने के लिए जरूरी है
पूरी दूनिया इस समय कोरोना की महामारी से लड़ रही है. इस बीच बांग्लादेश से एक ख़बर आई है जो यह बताती है कि देश में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (NRC) की जरूरत को बयां करती है.
दरअसल, बांग्लादेश ने 1975 के तख्तापलट में शामिल होने के मामले में सेना के एक पूर्व कैप्टन को फांसी दे दी है. इसी तख्तापलट में बांग्लादेश के संस्थापक बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या कर दी गई थी. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, अब्दुल मजीद को शनिवार रात स्थानीय समयानुसार 12 बजकर एक मिनट पर केरानीगंज में ढाका सेंट्रल जेल में फांसी पर लटका दिया गया. खास बात यह है कि उसने मरने से पहले बांग्लादेश पुलिस को दिए अपने बयान में स्वीकार किया था कि वह कोलकाता में पिछले 25 सालों से छिपकर रह रहा था. वह पिछले महीने ही कोलकाता से निकलकर बांग्लादेश पहुंचा था. ऐसे में भारत में एनआरसी के लागू होने की आवश्यकता को आसानी से समझा जा सकता है.
Bangladesh executes Abdul Majed at a central jail in Dhaka on Saturday midnight for his involvement in the assassination of the country’s independence leader Sheikh Mujibur Rahman in 1975, reports news agency AP pic.twitter.com/qnXOeKD6YI
— ANI (@ANI) April 11, 2020
वहीं, माजिद को फांसी पर चढ़ाने के संदर्भ में ढाका सेंट्रल जेल के जेलर महबूब उल इस्लाम ने कहा, ‘मजीद को फांसी देकर मौत की नींद सुला दिया गया. लगभग 25 साल तक भारत में छिपे रहने के बाद उसे मंगलवार को ढाका से गिरफ्तार किया गया था.’ उन्होंने अपने बयान में कहा है कि बीते शुक्रवार को मजीद की पत्नी और चार अन्य संबंधियों ने जेल में उससे दो घंटे मुलाकात की थी. इससे पहले बांग्लादेश के राष्ट्रपति अब्दुल हामिद ने मंगलवार को उसकी दया याचिका खारिज कर दी थी. इसके बाद उसे फांसी देने का रास्ता साफ हो गया था. स्थानीय मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि यह बांग्लादेशियों के लिए एक बहुत बड़ा गिफ्ट है क्योंकि इस साल रहमान की जन्म शताब्दी है.
1998 में ही निचली कोर्ट ने दिया था फैसला…

माजिद ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि उसने बंगबंधु रहमान की हत्या की है. माजिद, रहमान की हत्या में शामिल रहे उन दर्जनों लोगों में से एक है जिनकी फांसी की सजा को 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था. 1998 में निचली अदालत ने कुछ सैन्य अधिकारियों को फांसी की सजा सुनाई थी जो कि रहमान और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या में शामिल रहे थे.
शेख हसीना के पीएम बनते ही भाग आया था भारत
बता दें कि पीएम शेख हसीना, रहमान की बेटी हैं. हसीना इस घटना में बच गई थीं क्योंकि उस वक्त वह अपनी बहन के साथ जर्मनी के दौरे पर थीं. उस घटना में रहमान के परिवार में सिर्फ यही दो बहनें जिंदा बच पाई थीं. बताया जाता है कि उनकी बाद की सरकारों ने रहमान के हत्यारों को कूटनीतिक मिशन पर विदेश भेज दिया था.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, बंगबंधु की हत्या के बाद माजिद बांग्लादेश में ही करीब दो साल तक छुपकर रह रहा था. मगर शेख हसीना के प्रधानमंत्री बनने के बाद वह भारत भाग आया था. हसीना ने सरकार में आते ही माजिद और उसके साथियों को बचाकर रखने वाले विवादास्पद कानून को ही ख़ारिज कर दिया था. इस कारण फांसी की सजा को बरकरार रखा गया था.