शालू लोगों से मुलाक़ात करने के साथ ही उनका अभिवादन करते हुए इंसानी भावनाओं को जाहिर कर सकती है. अखबार पढ़ सकती है…
शालू लोगों से मुलाक़ात करने के साथ ही उनका अभिवादन करते हुए इंसानी भावनाओं को जाहिर कर सकती है. अखबार पढ़ सकती है. वह स्कूल में बच्चों को पढ़ा सकती है. ऑफिस के रिसेप्शन पर जॉब कर सकती है.
आईआईटी बॉम्बे में कार्यरत केंद्रीय विद्यालय के शिक्षक दिनेश पटेल ने एक ह्यूमनॉयड (Humanoid) यानी का निर्माण किया है जो 38 तरह की भाषा बोल सकती हैं. उन्होंने अपने इस आविष्कार का नाम ‘शालू’ रखा है.
शालू भारतीय भाषाओं जैसे हिंदी, मराठी, भोजपुरी, गुजराती, तमिल, तेलगु, मलयालम आदि बोलने में भी माहिर है. इस प्रकार वह 38 प्रसार की विदेशी भाषा बोलने में भी सक्षम है.
केंद्रीय विद्यालय में कम्प्यूटर साइंस के शिक्षक हैं
भारत में अवसर की तलाश में कई प्रतिभाओं को पंख नहीं मिल पाता. मगर हमारा देश गुणीजनों से भरा हुआ है. इन्हीं बौद्धिक धनवानों में एक हैं लेकिन दिनेश पटेल. वे केंद्रीय विद्यालय में कम्प्यूटर साइंस के शिक्षक हैं. उन्होंने हाल ही में शालू नाम की एक ह्यूमनॉयड यानी इंसान की शक्ल वाली एक रोबोट का निर्माण कर सभी को चौंका दिया है. वह बड़ी आसानी से भारत की विभिन्न भाषाओं के साथ ही 38 तरह की विदेशी भाषा को भी बोल सकती है.
तीन साल में लगे 50 हजार रुपये
मीडिया से मुखातिब होने पर दिनेश ने बताया कि वे बॉलीवुड के मेगास्टार में शुमार रजनीकांत की फ़िल्म रोबोट से प्रेरित होने के बाद ही शालू के निर्माण में जुट गए थे. यह हांगकांग में हैंसन रोबोटिक्स के बनाये रोबोट सोफिया की ही तरह है. बता दें कि सोफिया इंसानों की तरह भावना दर्शाती थी. वह लोगों से मिलकर हंसती, गुस्साती और हाथ मिलाती थी.

दिनेश ने कहा, “शालू का निर्माण करने में उन्होंने कबाड़ के सामान यानी प्लास्टिक, कार्डबोर्ड, लकड़ी, एल्युमीनियम आदि का उपयोग किया है. इसे बनाने में तीन साल का कठिन समय और 50,000 रुपये की रकम लगी है.” अपनिबात आगे बढ़ाते हुए वे कहते हैं कि उन्होंने कहा कि यह एक प्रोटोटाइप है. यह किसी को पहचान सकती है. चीजों को याद कर सकती है. सामान्य ज्ञान और गणित से संबंधित सवालों के जवाब दे सकती है और भाषाओं की जानकार तो है ही.
घरेलू काम में माहिर है शालू
शिक्षक ने अपने आविष्कार के बारे में बताया, “शालू लोगों से मुलाक़ात करने के साथ ही उनका अभिवादन करते हुए इंसानी भावनाओं को जाहिर कर सकती है. अखबार पढ़ सकती है. वह स्कूल में बच्चों को पढ़ा सकती है. ऑफिस के रिसेप्शन पर जॉब कर सकती है.” उन्होंने कहा कि शालू का निर्माण करने में उन्होंने प्लास्टर ऑफ पेरिस का इस्तेमाल किया है. चेहरे पर मास्क भी लगाया है. दिनेश पटेल का दावा है कि शालू घर के काम और ऑफिस के काम निपटा सकती है. उनका मानना है कि इस दिशा में यदि बड़े स्तर पर काम किया जाए तो ह्यूमनॉयड हमारे जीवन में बड़े बदलाव ला सकते हैं.
शिक्षा और मनोरंजन के क्षेत्र में है बड़ी खोज
आईआईटी बॉम्बे में कम्प्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग के प्रोफेसर सुप्रतीक चक्रवर्ती आविष्कारक दिनेश पटेल के इस खोज की सराहना कर रहे हैं. उन्होंने इसे एक बड़ा आविष्कार करार दिया है. उन्होंने एक पत्र लिखकर कहा कि यह वास्तव में महान विकास है. इस तरह के रोबोट का इस्तेमाल शिक्षा, मनोरंजन और कई अन्य क्षेत्रों में भी किया जा सकता है. शालू भविष्य के भावी वैज्ञानिकों के लिए एक प्रेरणा हो सकती है.